हमारे अपने माननीय सांसद अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने के लिये एक स्वर से एकमत हो गये । उन्हें इसके लिये इस बार थोडी बहस करनी पडी । अपने हित के लिये वो सभी दलगत विचारों से ऊपर उठकर सर्व सहमत हो गये । इसके लिये न कोई साम्प्रदायिक रहा, न कोई वामपंथी और न कोई पूँजीवादी ।
ये हम मतदाताओं के लिये बडे ही शर्म की बात है कि हमारे प्रतिनिधि अपना वेतन बढ़ाने के लिये कैबिनेट सचिव और कारपोरेट सेक्टर से तुलना कर रहे हैं । वो अपने संसदीय क्षेत्र में झोपड-पट्टी में रहने वाले, ठेले खोमचे वाले, गरीब मज़दूरों और गाँवों-देहातों में रहने वाले उन करोड़ो मतदाताओं से अपनी तुलना क्यों नही करते ? आज अगर वो माननीय सांसद है तो सिर्फ इन गरीब और मध्य्मवर्गीय मतदाताओं के कारण ।
इसके विपरीत किसानों से जबरदस्ती छीनी जा रही उनकी पुश्तैनी ज़मीनों का उचित मुआवज़ा पाने के लिये उन्हें लाठी-डन्डे और गोलियां खानी पड़ रही हैं । उन्हें अपनी जान देनी पड़ रही है । उन्हें अपने ही द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों से मुआवजा धनराशि बढ़ाने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है ।
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