Thursday, July 15, 2010

अवतार

अभी कुछ दिनों पहले हाँलीवुड की फिल्म “अवतार” देखी । फिल्म बहुत ही पसन्द आई । फिल्म तकनीकी एवं पटकथा दोनो स्तर से उत्कृष्ट लगी । फिल्म के ग्रेफिक्स तो कमाल के थे । लगा ही नहीं कि हम काल्पनिक ग्रह को देख रहे हैं बल्कि लगा जैसे हम स्वंय उस ग्रह का एक हिस्सा है ।
फिल्म निर्माता ने अपनी अदभुद कल्पनाशक्ति को परदे पर साकार कर दिया । उन्होंने दूसरे ग्रह के प्राणियों की एक नई भाषा ही रच डाली । फिल्म में दो सभ्यताओं का चित्रण है । एक तरफ हम प्रथ्वी वासी हैं जो विज्ञान के चरम तकनीकी ज्ञान से सम्रध्द और उसी ज्ञान के परिणामस्वरुप आकण्ठ लालच में डुबे हुए जिसमें हमने केवल सत्ता और धन की चाहत को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना डाला । इसके लिये हम लालच एवं स्वार्थ में अन्धे होकर जीवनदायनी और सहचर प्रक्रति को भी नष्ट करने में जरा भी संकोच नही करते। और दूसरी तरफ है पेण्ड्रोला ग्रह के वासी जो प्रक्रति को अपना नियन्ता मानते है और प्राक्रतिक नियमों का पालन करते हुए उससे भावनात्मक रुप से जुडे हुए हैं । जानवरों और पेड़-पौधों को भी अपना सहचर मानते हैं । उनके आचरण में पवित्र भावनात्मक एवं निर्मलता छलकती है । जो आत्मा को शान्ति प्रदान करती है । लेकिन हम अपने तकनीकी ज्ञान से उपजे लालची और स्वार्थी प्रव्रति के कारण कीमती पत्थर के लिये पेण्ड्रोला की सभ्यता को ही नष्ट कर देना चाहते हैं ।
पता नही फिल्म निर्माता का पटकथा लिखते समय क्या उद्देश्य था । व्यवसायिक या भावनात्मक । लेकिन मैनें फिल्म की पटकथा को भावनात्मक रुप से ग्रहण किया । जो हमारी सोच और जीवन शैली को बिलकुल स्पष्ट रुप से दर्शाती है । हम जिसे विज्ञान कहते हैं उसने हमें तकनीकी ज्ञान के चरम स्तर तक पहँचा दिया है और इस ज्ञान ने हमारे अन्दर घोर धन की और सत्ता की ललक पैदा कर दी है । हम दिन-रात केवल इसी को पाने के लिये प्रयासरत रहते हैं । इसके लिये हम जीवनदायनी प्रक्रति को निरन्तर खोखला करते जा रहे हैं । हम प्रक्रति को खोद-खोद कर पेट्रोल, कोयला, तांबा-लौह अयस्क, पत्थर, यूरेनियम, सोना-चाँदी, हीरे आदि बस निकालते ही जा रहे हैं । उसे अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहे हैं। वनों का निरन्तर सफाया करते जा रहे हैं । दिन-रात प्रक्रति को लूटने में ही लगे हुए हैं। हम भूल गये हैं कि यह प्रक्रति हमारी नियन्ता/हमारी सहचर है । हमारे दूसरे ग्रहों के खोज अभियान भी सिर्फ वहाँ की प्राक्रतिक सम्पदाओं को लूटने मात्र के लिये हैं । तकनीकी ज्ञान ने या विज्ञान ने हमें भावहीन तथा विवेकहीन बना दिया है ।
ज्ञान के दो पक्ष होते हैं । एक पक्ष है रचनात्मक ज्ञान जो हमें भावुक और विवेकशील बनाता है । जो हमे आध्यात्मिक और आत्मज्ञानी बनाता है तथा जिसके सहारे हम अपने साथ-साथ पूरी स्रष्टि के कल्याण के लिये सोचते हैं और अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं । जैसे बुद्ध, मोहम्मद साहब, ईसा मसीह, कबीर, तुलसी, गाँधी, मदर टेरेसा आदि-आदि महान व्यक्तित्व । ज्ञान का दूसरा पक्ष है विध्वंसक । जो ज्ञान हमें स्वार्थी, लालची, सत्ता लोलुप और मोह्ग्रस्त बनाता है वो ज्ञान का विध्वंसक रुप ही है । उसमें हमें केवल अपनी ही चिन्ता रहती है, हम केवल अपने बारे में ही सोचते हैं । हमारे सोच से या हमारे कार्य से दूसरे को होने वाले कष्ट या नुकस्सन की हमें कोई चिन्ता नही रहती । तकनीकी ज्ञान हमारे इस विध्वंसक सोच को और बल प्रदान करता है । हमारी चिन्तन की प्रव्रति को नष्ट करता है । हमारे वर्तमान जीवन-दर्शन में ज्ञान का यही विध्वंसक रुप नज़र आता है ।
अन्त में यही कहना चाहूँगा कि जो ज्ञान को विक्रत करे वही है विज्ञान

1 comment:

  1. film ka msz achha hai ..film ka sabse mazboot paksh usme prykut takneek hai ... film ke director hain jems cameron jinki filmo ki patkatha is avtar film se bahut behtar hoti hai ..

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