Sunday, May 23, 2010

पर्यावरण बचाओ------------ दादा ले पोता बरते अपनाओ

जब हम छोटे थे तो बाजार में खरीदारी करते समय अक्सर दुकानदार वस्तुओं की लम्बे समय तक चलने वाली चीज़ो की तारीफ करते हुए यही कहते थे कि ये ले लिजिए इसको दादा ले पोता बरते अर्थात आप खरीदिये और आपके पोते भी इसे इस्तेमाल करेगें । उस वक्त वस्तुओं को खरीदते समय हमारा उद्देश्य भी यही होता था कि हम टिकाऊ वस्तु खरीदें जिसे हम और हमारे बच्चे भी इस्तेमाल करें ।

हमारी अपनी संसक्रति भावनाप्रधान है । हम भौतिक पदार्थों से भी भावनात्मक समबन्ध रखते हैं । तभी तो पुरानी वस्तुओं को दिखाते समय हम गर्व से कहते हैं कि यह हमारे पिताजी की साइकिल है, यह सिलाई मशीन हमारी माताजी की है उन्हें शादी में मिली थी या ये मेज़-कुर्सी हमारे दादाजी की है आदि-आदि । हम इन वस्तओं को अपने से अलग नही कर पाते हैं और उनका इस्तेमाल सावधानी एवं गौरव के साथ करते हैं । हम पुरानी चीज़ों को इस्तेमाल करने के साथ-साथ प्रक्रति के अनावश्यक दुरुपयोग को भी रोकने का कार्य भी कर रहे होते हैं । क्योंकि पुरानी चीज़ों के इस्तेमाल से प्रक्रति में अनावश्यक कबाड इकट्ठा नही होता है ।

जबसे पूँजीवादी व्यवस्था ने हमारी अर्थव्यवस्था को अपने कब्जे में ले लिया है तबसे हमारी सोच-विचारधारा ही बदल गयी है । हमारी सोच भावनात्मक से स्वार्थपरक हो गयी है । हम केवल वर्तमान लाभ-हानि के बारे में ही सोचते हैं । हमारा ध्येय केवल यही होता है कि इसमें हमारा क्या फायदा है । पूँजीवादी व्यवस्था के फलने-फूलने का मूल मन्त्र USE AND THROW ही हमारे जीवनशैली KAAका आधार हो गया है । क्योंकि इसी मन्त्र के सहारे वो बाजार में निरन्तर माँग बनाए रखता है । हमारी जीवनशैली से प्रक्रति या समाज को क्या नुकसान हो रहा है उससे हमें कोई मतलब नही । हम अपनी USE AND THROW की निति से प्रक्रति और आने वाली पीढ़ी को कितना नुकसान पहुँचा रहे हैं हम इससे बिलकुल लापरवाह है । इस सोच से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है हम इससे बिलकुल लापरवाह हैं

यदि हम आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण देना चाहते हैं तो हमें दादा ले पोता बरते की निति अपनानी होगी

1 comment:

  1. दादा ले पोता बरते की निति पर हमने अब तक अपना जीवन काटा..आने वाली पीढ़ी देखिये, कहाँ तक अपनाती है.हम तो सिर्फ संस्कार दे सकते हैं.

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