मैं पहले मांसाहारी था । मांस और मछ्ली के तरह-तरह के व्यंजन बडे ही शौक से खूब चाव के साथ खाता था । अपने खाने के स्वाद के शौक में जानवर की होने वाली हत्या की ओर कभी मेरा ध्यान ही नही जाता था । तथा अपने इस स्वाद के शौक में मुझसे हो रही भयकंर भूल की ओर कभी मेरा ध्यान ही नही गया ।
वर्ष 1987 में बद्रीनाथ की यात्रा के बाद मेनें मासांहार भोजन खाना बन्द करने का फैसला किया । तब उस फैसले का कारण जीव हत्या के दोष से बचना था । जब कोई भी मुझसे मांसाहार त्यागने कारण पूछता था तो मैं यही वजह बताता था । पर यह तर्क मुझे पूर्ण सन्तुष्टि नही प्रदान कर पाता था । मैं मांसाहार त्यागने का स्वयं में ही विशलेषण करता रहता था ।
पर अगर अब मुझसे कोई भी मांसाहार न करने का कारण पूछता है तो मैं पूरी द्रढता के साथ कहता हुं कि मांसाहार करने वाले भावुक नही होते । क्योंकि अगर उनमे भावुकता होती तो वो कैसे किसी जीव की हत्या केवल अपने स्वाद के लिए करते । जबकि प्रक्रति में बिना जीव हत्या के खाने की चीजों के विकल्प उपलब्ध हैं । जब हमारे किसी प्रिय को यदि हल्की सी भी खरोंच या चोट लगती है तो हम परेशान हो जाते हैं उसके इलाज़ में जुट जाते हैं । हम उसकी तकलीफ़ के दर्द को महसूस करते हैं । क्योंकि हम भावना के साथ उससे जुडे होते हैं । परन्तु अपने भोजन के लिए हमें जीव हत्या में हल्का सा भी दर्द महसूस नही होता क्योंकि प्राणी होने के उपरान्त भी हमारा उनसे भावनात्मक द्रष्टिकोण नही होता । अगर हममें भावुकता होती तो हम कैसे किसी जीव की हत्या केवल अपने स्वाद के लिए करते । इसलिए मैं द्रडता के साथ कहता हुं कि मांसाहारी भावुक नहीं होते । दुनिया में अगर मांसाहार बन्द हो जाये तो आधे से अधिक अधर्म के कार्य खत्म हो जायें ।
जगदीश चन्द्र पन्त,
लखनऊ ।
शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिये भी मांसाहार से परहेज करना अपेक्छित है। मांस में पाये जाने वाले प्रुरिन से कई रोगों की पैदाईश होती है जिनमें गठियावात,और हृदय संबंधी व्याधियां प्रमुख हैं।
ReplyDeleteपरम आर्य जी ! ओछी हरकत की है आपने । यह पोस्ट मांसाहार के विषय पर नहीं है और न ही जीव हत्या के विषय पर है । आप भी तो चिता पर मुर्दा जलाते हो और उस समय मुर्दे के शरीर में अनगिनत जीव होते हैं जिन्हें आप जला डालते हैं । शिकार की घटनाएं तो खुद पुराणों में भी हैं ... लेकिन आज की पोस्ट का विषय जो है आप उसपर खुद को केन्द्रित करें । http://blogvani.com/blogs/blog/15882
ReplyDeleteआदरणीय शेखचिल्ली साहब,आपकी सोच और शिक्षापरक टिप्पणी को मेरा सादर नमन ।
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