हम जब भी कुछ सोचते हैं या किसी भी कार्य को करते हैं, तो इन दोनों अवस्थाओं के मूल में हमारी भावना निहित होती है । जो अप्रत्यक्ष होती है लेकिन सोच और कार्य की आत्मा होती है । उसी मूल के आधार पर हमारी सोच/कार्य का फलितार्थ छुपा होता है । हम जो भी विचार/कार्य जिस भावना से करते हैं उसके फलीफूत होने पर उसके मूल में छुपी हमारी भावना स्पष्ट रुप से झलकती है।
ससार में मानव का कोई भी विचार/कार्य बिना भावना के नही होता ।
प्रक्रति ने केवल मानव को ही सोचने-समझने के लिये बुद्धि प्रदान की है ताकि वो विवेक और सदभाव से विचार/कार्य कर सके । प्रक्रति ने पेड़-पोधों और जानवरों को यह क्षमता प्रदान नही की है । वो प्रक्रति के नियमों के अनुसार स्वयं संचालित होते हैं । इसलिए वो प्रक्रति के सच्चे सहचर हैं । संसार में हम मानव लोगों का उत्तरदायित्व भी सबसे अधिक है ।
आज समाज में नेता में देशहित/सामाजिक हित की, शिक्षक में छात्रहित की, चिकित्सक में मरीज़हित की, व्यापारी में गाहकहित की, वकील में मुवक्किल के हित की, सरकारी सेवकों में विभागीयहित की, पत्रकारिता में लोकहित की भावना नही है । जिसका असर समाज में सर्वत्र दिखायी दे रहा है ।
आज़ हमारे विचार/कार्य केवल व्यक्तिगत और पारिवारिक हित की भावना से जुड़े हुए हैं ।
इस सबका मूल कारण यह है कि विचार/कार्य में उसकी मूल आत्मा भावना के व्यापक महत्व हमने बिलकुल भुला दिया है । हम केवल संकुचित भावना से संसार में विचार/कार्य कर रहे हैं, और जो अनाचार/अव्यवस्था/भ्रष्टाचार के रुप में समाज में सर्वत्र नज़र आ रहा है ।
जगदीश चन्द्र पन्त,
लखनऊ ।
बेहतरीन चिन्तन!! अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteaap ki soch vicharaniy hai
ReplyDeleteइस सलाह के लिये एंव स्वागत के लिये धन्यवाद । मैं एक नया ब्लागर हुं । अभी मुझे ब्लाग के तकनीकी और अन्य पहलू को समझना है ।
ReplyDeleteइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteApane badhiya lekhan ke sath blog shuru kiya---hardik shubhkamnayen.
ReplyDeleteमैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत होते हुए यह भी जोडना जरूरी समझता हूं कि परिवार ही भृष्टाचार की गंगोत्री है। मनुष्य के समस्त क्रिया कलाप उसके परिवार पर केन्द्रित होते हैं ।जिसका परिवार ही नहीं वह भृष्टाचार किसके लिये करेगा? अटलजी की नजीर दी जा सकती है।मैंने अपने लेखों में पहिले भी इस बात पर जोर दिया है कि देश के बडे पदों के चुनाओं मे सिर्फ़ परिवार विहीन व्यक्तियों को ही खडे होने का कानून बना देना चाहिये। लेकिन परिवार के लिये करोडों का भृष्टाचार करने वाले मधुकोडा जैसे नेता इस नियम को सिरे से खारीज कर देंगे। मैं तो यह कहना चाहूंगा कि वर्तमान हालात में जबकि स्विस बैंक भारत के अकूत धन से अटी पडी हैं तो बाबा रामदेव जैसे देश हित चिंतक के हाथ में देश की बागडोर सौंपना सर्व श्रेष्ठ विकल्प है।
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